गजलें और शायरी >> कहकशां का सफर कहकशां का सफरसुरेश कुमार
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प्रस्तुत हैं शेरो-ओ-शायरी व ग़ज़ल...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘कहकशाँ का सफ़र’ उर्दू ग़ज़ल के आधुनिक शिल्प और शब्द-विधान
को रेखांकित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। इस संकलन में रघुपति
सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, असरार उल हक मजाज़, जाँनिसार
अख्तर, मुइन अहसन जज्बी, साहिर लुधियानवी, डॉ. वज़ीर आगा, कैफ़ी आज़मी,
नासिर काज़मी, अहमद उ़राज़, शकेल जलाली, बशीर बद्र, शहरयार, निदा फ़ाज़ली
और परवीन शाकिर की दस-दस प्रतिनिधि ग़ज़लों को संकलित करके इसे एक
ऐतिहासिक स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया है।
समकालीन उर्दू ग़ज़ल के प्रतिनिधि शायरों का देवनागरी में अपूर्व संकलन।
समकालीन उर्दू ग़ज़ल के प्रतिनिधि शायरों का देवनागरी में अपूर्व संकलन।
प्राक्कथन
समकालीन उर्दू शायरी में फ़िराक़ गोरखपुरी ‘पॉयोनीअर
पोए़ट’
(Poineer poet) अर्थात् अग्रदूत कवि की हैसियत रखते हैं। इस बात को लेकर
हमारे उर्दू आलोचकों में मतभेद भी संभावित है, लेकिन फ़िराक़ ने उर्दू
शायरी और विशेष रूप से गज़ल को नये आयाम दिये हैं, उसमें किसी भी विद्वान
को शायद कोई आपत्ति नहीं होगी। उर्दू ग़ज़ल ने न केवल इसे स्वीकारा बल्कि
फ़िराक़ की शायरी को सम्पादित करके उनके प्रति अपनी आस्था और उर्दू ग़ज़ल
में होने वाले नये परिवर्तनों पर अपनी मुहर लगायी।
‘कहकशां का सफ़र’ उर्दू ग़ज़ल के आधुनिक शिल्प और शब्द-विधान को रेखांकित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। इस संकलन में रघुपति सहाय ‘फ़िराक़ गोरखपुरी’ से लेकर हमारी आधुनिकतम् कवयित्री परवीन शाकीर तक पन्द्रह प्रतिनिधि शायरों की चुनी हुई ग़ज़लों का यह संकलन न सिर्फ आधुनिक अथवा समकालीन उर्दू शायरों की प्रतिनिधि ग़ज़लों से आपको परिचित करायेगा बल्कि पिछली शताब्दी में उर्दू ग़ज़ल में आये परिवर्तनों, चाहे वह शब्द-विधान रहा हो या शिल्प-विधान या फिर हमारी समकालीन परिस्थितियों का वस्तुगत चित्रण, जो कि निश्चित रूप से भारत और पाकिस्तान की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से बहुत ज़ियादा अलग नहीं है, का इसमें आपको एक जीता-जागता सामयिक दस्तावेज़ उपलब्ध होगा, जो कि न केवल हमारे समय का इतिहास है, बल्कि एक जीवंत सच्चाई है जिससे कोई भी सजग और प्रबुद्ध व्यक्ति मुँह मोड़ने की कोशिश करके ख़ुद को शर्मिन्दा नहीं करना चाहेगा।
बहरहाल, इस संकलन में रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, असरार उल हक मजाज़, जाँनिसार अख्तर, मुइन अहसन जज्बी, साहिर लुधियानवी, डॉ. वज़ीर आगा, कैफ़ी आज़मी, नासिर काज़मी, अहमद उ़राज़, शकेब जलाली, बशीर बद्र, शहरयार, निदा फ़ाज़ली और परवीन शाकिर की दस-दस प्रतिनिधि ग़ज़लों को संकलित करके इसे एक ऐतिहासिक स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया है। बहुत संभव है कि लगभग एक शताब्दी की उर्दू ग़ज़ल यात्रा को चन्द सफ़हों में समेटने की कोशिश में ग़ज़ल का कोई महत्वपूर्ण हस्ताक्षर नज़र अंदाज़ हो गया हो लेकिन सम्पादक और प्रकाशक की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए पाठकगण इसे गम्भीरता से नहीं लेगे क्योंकि हमारा प्रयास इस पूरे दौर में घटित ग़ज़ल के विकास की ओर अधिक रहा है, न कि ग़ज़लों शायरों के व्यक्तिगत विकास पर। इस तरह की किसी त्रुटि अथवा अनजाने में कोई किसी उपेक्षा के लिए सम्पादक को खेद रहेगा।
डॉयमंड पॉकेट बुक्स के संचालक भाई नरेन्द्र कुमार जी के उर्दू शायरी के प्रति अथाह प्रेम का ही यह परिणाम है कि भारत और पाकिस्तान के समकालीन उर्दू शायरों की रचनाओं को देवनागरी में प्रकाशित करने के लिए वे इतने उन्मत्त हैं कि अपने व्यवसाय के हानि-लाभ को भी दरकिनार करते हुए, इस तरह की दर्जनों कृतियां प्रकाशित कर चुके हैं। और आज भी वे हिम्मत हारने का नाम नहीं ले रहे। जो भी हो, देवनागरी जानने वाले उर्दू शायरी के प्रेमियों के लिए वे एक बड़ा साहित्यिक और ऐतिहासिक काम कर रहे हैं।
मुझे उम्मीद हैं कि ‘कहकशाँ का सफ़र’ के सभी पन्द्रह ग़ज़लगो शायरों की ग़ज़लें पाठकों को न सिर्फ़ पसन्द आयेंगी बल्कि बहुत से शे’र उनकी ज़बान पर चढ़कर हमारे आज के मुश्किल वक़्त में उनकी बहुत-सी मुश्किलों को आसान करेंगे और उन्हें आगे बढ़ाने की प्रेरणा देंगे। साहिर लुधियानवी के शब्दों में कहूँ तो-
‘कहकशां का सफ़र’ उर्दू ग़ज़ल के आधुनिक शिल्प और शब्द-विधान को रेखांकित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। इस संकलन में रघुपति सहाय ‘फ़िराक़ गोरखपुरी’ से लेकर हमारी आधुनिकतम् कवयित्री परवीन शाकीर तक पन्द्रह प्रतिनिधि शायरों की चुनी हुई ग़ज़लों का यह संकलन न सिर्फ आधुनिक अथवा समकालीन उर्दू शायरों की प्रतिनिधि ग़ज़लों से आपको परिचित करायेगा बल्कि पिछली शताब्दी में उर्दू ग़ज़ल में आये परिवर्तनों, चाहे वह शब्द-विधान रहा हो या शिल्प-विधान या फिर हमारी समकालीन परिस्थितियों का वस्तुगत चित्रण, जो कि निश्चित रूप से भारत और पाकिस्तान की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से बहुत ज़ियादा अलग नहीं है, का इसमें आपको एक जीता-जागता सामयिक दस्तावेज़ उपलब्ध होगा, जो कि न केवल हमारे समय का इतिहास है, बल्कि एक जीवंत सच्चाई है जिससे कोई भी सजग और प्रबुद्ध व्यक्ति मुँह मोड़ने की कोशिश करके ख़ुद को शर्मिन्दा नहीं करना चाहेगा।
बहरहाल, इस संकलन में रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, असरार उल हक मजाज़, जाँनिसार अख्तर, मुइन अहसन जज्बी, साहिर लुधियानवी, डॉ. वज़ीर आगा, कैफ़ी आज़मी, नासिर काज़मी, अहमद उ़राज़, शकेब जलाली, बशीर बद्र, शहरयार, निदा फ़ाज़ली और परवीन शाकिर की दस-दस प्रतिनिधि ग़ज़लों को संकलित करके इसे एक ऐतिहासिक स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया है। बहुत संभव है कि लगभग एक शताब्दी की उर्दू ग़ज़ल यात्रा को चन्द सफ़हों में समेटने की कोशिश में ग़ज़ल का कोई महत्वपूर्ण हस्ताक्षर नज़र अंदाज़ हो गया हो लेकिन सम्पादक और प्रकाशक की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए पाठकगण इसे गम्भीरता से नहीं लेगे क्योंकि हमारा प्रयास इस पूरे दौर में घटित ग़ज़ल के विकास की ओर अधिक रहा है, न कि ग़ज़लों शायरों के व्यक्तिगत विकास पर। इस तरह की किसी त्रुटि अथवा अनजाने में कोई किसी उपेक्षा के लिए सम्पादक को खेद रहेगा।
डॉयमंड पॉकेट बुक्स के संचालक भाई नरेन्द्र कुमार जी के उर्दू शायरी के प्रति अथाह प्रेम का ही यह परिणाम है कि भारत और पाकिस्तान के समकालीन उर्दू शायरों की रचनाओं को देवनागरी में प्रकाशित करने के लिए वे इतने उन्मत्त हैं कि अपने व्यवसाय के हानि-लाभ को भी दरकिनार करते हुए, इस तरह की दर्जनों कृतियां प्रकाशित कर चुके हैं। और आज भी वे हिम्मत हारने का नाम नहीं ले रहे। जो भी हो, देवनागरी जानने वाले उर्दू शायरी के प्रेमियों के लिए वे एक बड़ा साहित्यिक और ऐतिहासिक काम कर रहे हैं।
मुझे उम्मीद हैं कि ‘कहकशाँ का सफ़र’ के सभी पन्द्रह ग़ज़लगो शायरों की ग़ज़लें पाठकों को न सिर्फ़ पसन्द आयेंगी बल्कि बहुत से शे’र उनकी ज़बान पर चढ़कर हमारे आज के मुश्किल वक़्त में उनकी बहुत-सी मुश्किलों को आसान करेंगे और उन्हें आगे बढ़ाने की प्रेरणा देंगे। साहिर लुधियानवी के शब्दों में कहूँ तो-
बुझ रहे हैं एक-एक करके अक़ीदों के दीये
इस अंधेरे का भी लेकिन सामना करना तो है।
इस अंधेरे का भी लेकिन सामना करना तो है।
बहुत-बहुत शुभकामनाओं के साथ !
107, ज्वालापुरी
जी.टी.रोड, अलीगढ़-202001
जी.टी.रोड, अलीगढ़-202001
सुरेश कुमार
फ़िराक़ गोरखपुरी
(1)
बदलता है जिस तरह पहलू ज़माना
यूँ ही भूल जाना, यूँ ही याद आना
अजब सोहबतें हैं मोहब्बतज़दों1 की
न बेगाना कोई, न कोई यगाना2
फुसूँ3 फूँक रक्खा है ऐसा किसी ने
बदलता चला जा रहा है ज़माना
जवानी की रातें, मोहब्बत की बातें
कहानी-कहानी, फ़साना-फ़साना
तुझे याद करता हूँ और सोचता हूँ
मोहब्बत है शायद तुझे भूल जाना
यूँ ही भूल जाना, यूँ ही याद आना
अजब सोहबतें हैं मोहब्बतज़दों1 की
न बेगाना कोई, न कोई यगाना2
फुसूँ3 फूँक रक्खा है ऐसा किसी ने
बदलता चला जा रहा है ज़माना
जवानी की रातें, मोहब्बत की बातें
कहानी-कहानी, फ़साना-फ़साना
तुझे याद करता हूँ और सोचता हूँ
मोहब्बत है शायद तुझे भूल जाना
1.प्रेम के मारे हुए, 2. आत्मीय, 3. जादू
(2)
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी ! हम दूर से पहचान लेते हैं
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए1 नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इन्सान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं
खुद अपना फ़ैसला भी इश्क़ में काफ़ी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुज़रें जो दिल में ठान लेते हैं
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत2 का
इबारत देखकर जिस तरह मा’नी जान लेते हैं
तुझे घाटा न होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में
हम अपने सर तिरा ऐ दोस्त हर नुक़सान लेते हैं
ज़माना वारदात-ए-क़ल्ब सुनने को तरसता है
इसी से तो सर-आँखों पर मिरा दीवान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी ! हम दूर से पहचान लेते हैं
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए1 नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इन्सान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं
खुद अपना फ़ैसला भी इश्क़ में काफ़ी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुज़रें जो दिल में ठान लेते हैं
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत2 का
इबारत देखकर जिस तरह मा’नी जान लेते हैं
तुझे घाटा न होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में
हम अपने सर तिरा ऐ दोस्त हर नुक़सान लेते हैं
ज़माना वारदात-ए-क़ल्ब सुनने को तरसता है
इसी से तो सर-आँखों पर मिरा दीवान लेते हैं
1.हाय-हाय, 2.स्वभाव
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